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________________ - ( 12 / ना नामे जे भ्रम जाल उभी करी छे तेनो जवाब प्रापे, श्रा भ्रम जाल खास करीने कानजी स्वामी ढुंढक मत छोडी निकल्या अने तेमनी पाछल बीजो समाज न जाय तेमने माटेज रचाणी छे, बाकी श्रा पुस्तकनो खरो जवाब नो कानजी स्वामी आदिए ढुंढक मत त्यजी, मूर्तिपूजा स्वीकारी ने भापीज दीधो छ। उक्त विरोधी लेख का उत्तर "स्थानकवासी जैन" पत्र में गुजराती में ता० 21-8-37 के पृष्ट 52 में और हिंदी में जैन पथ प्रदर्शक" में ता० 25-8-37 के अङ्क के पृष्ठ 5 के दूसरे कोलम से निम्न प्रकार से दिया गया है। मि अभ्यासी की अवलोकन दृष्टि . 'लोकाशाह मत-समर्थन पर मूतिपूजक 'जैन' पत्र के किसी पर्देनशीन अभ्यासी (विद्यार्थी की दृष्टि पड़ी। अ. भ्यासी महोदय ने ता०८ अगस्त 37 के अङ्क में 'अभ्यास अने अवलोकन' शीर्षक में जो कलम चलाई है वह वास्तव में उनके अपूर्ण अभ्यास की सूचिता है / यद्यपि अभ्यासी बन्धु ने लोकाशाह मत-समर्थन के लिए ऐसा कोई प्रयत्न नहीं किया, जिससे उसकी सत्य एवं प्रमाणिकता में बाधा पहुंचे, और मुझे अपने निबन्ध की सत्यता के विषय में लेखक को कुछ सूचना देनी पड़े, तथापि अभ्यासी महोदय के अभ्यास की अपूर्णता एवं तत् सम्बन्धी दृषणों को दूर करने के लिए निम्न पंक्तियां लिख देना उचित समझता हूँ। .: १-अभ्यासी बन्धु को 'लोकाशाह मत-समर्थन में लोंकाशाह के मत: का समर्थन ही नहीं सूझा यह तो है अवलोकन
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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