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________________ ( 11 / श्रावी अावी घणीए पुष्पांजलिश्रो पा पुस्तकमां भरी छे, श्री सागरानन्दसूरिजी, श्री वल्लभसूरिजी, मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी, मुनि श्री दर्शनविजयजी. श्री लब्धिसूरिजी आदि श्वेताम्बर समाजना विद्वानो ने निंदवामां श्रा लेखक पागल वध्या छ। भावी रीते कोई पण वितण्डावाद उभो करवामां स्था० मार्गी समाज पहेल करे छे, कलेश नोतरे छे, अने तेनो कोइ जवाब आपे एटले दलीलना अभावे घबराह जाय, अशांति अशांतिनी बांग. पोकारे, संतबालनी लेखमालाना जवाबो अपाया पछी समाज शांत हती, पण प्रा नवा पंडितने ए शांति न गमी, एटले मूर्तिपूजाना खण्डननुं अने श्वेताम्बरा. चार्योनी निन्दानुं पुराण रची नाख्युं, खरी रीते संतबालना जवाबमां मुनिराज श्री ज्ञानसुन्दरजी चित मूर्तिपूजा का इतिहास अने श्रीमान् लोकाशाह बन्ने पुस्तको छे, आ बन्ने पुस्तको ढुंढक समाजने पवा सचोट उत्तर श्रापनारा छे के पंडित रतनलाल जेवानां सैकडो पुस्तको तेनी सामे झांखा पडी जाय तेम छे, मूर्तिपूजाना जे पाठो जेठमलजीए समकित. सारमां, हरखचन्दजीए राजचन्द्र विचार समीक्षामां, अमो. लखऋषिए पोतानी अागम बत्रीसीमां छप.व्यां तेज पाठों अने अर्थोथी ए पुस्तकोमा सिद्ध कर्यु छ के जिनमूर्तिना पाठो शास्त्रोमां छे, श्रा पाठो ने जुठा ठराववा श्रा पंडित बहार पड्या छे, पंडित बेचरदासना मूर्तिपूजा- विचारो माटे राय पसेणीय सूत्रनो तेमनो अनुवाद जोवानी हुंभलामण करुं छु / मुनि सम्मेलन द्वारा स्थापित प्रतिकार समिति ने खास सूचना छ के श्रा ग्रन्थर्नु अवलोकन करी तेमां शास्त्रना पाठो
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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