________________ ( 152) माचार्य ने ऐसा कथन नहीं किया होगा, यदि अन्य आचार्यों के उल्लेखों का उद्धरण भी दिया जाय तो व्यर्थ में निबन्ध का कलेवर अधिक बड़ा हो जाय, इसलिए इस प्रकार के अन्य अवतरण नहीं देकर आपको चौंका देने वाले दो चार अवतरण अन्य आचार्यों के भी देता हूं। देखिये (12) श्री जिनदत्त सरिजी विवेक विलास (आवृत्ति 5) में लिखते हैं कि "छए रसमा आधार स्वरूप उष्णक्रांति प्रद, कफ, कृमि, दुगंध, भने वायु नो नाश करनार, मुख ने शोभा अर्पनार एवा तांबूल ने जे माणसो खाय छे तेना घरने श्री कृष्णना घरनी पेठे लक्ष्मी छोड़ती नथी " (पृष्ठ 36) (13) अब जरा सावधान होकर स्त्री वशीकरण सम्बन्धी जैनाचार्य का बताया हुआ प्रयोग भी देखिये___ "जे दिशानी पोतानी नासिका बहेती होय ते तरफ कामिन ने आसन ऊपर अथवा शैय्या ऊपर बेसाड़े छे,आम करवाथी है उन्मत्त कामिनिमओ तत्काल मांज वशीभूत थइ जाय छे" (पृष्ठ 160) (14) जे दिवसेभारे भोजनन कयु होय, तृषा तुधादिनी वेदना अंगमां लवलेश पण न होय, स्नानादिक थी परवारी मंगे चन्दन केसर आदि नु विलेपन कयु होय, अने हृदय मां प्रीति तथा स्नेह नी उर्मीमो उछलती होय तोज ते स्त्री ने भोगवी शके छे” (पृष्ठ 166) ___ इस विषय में जैनाचार्यजी ने और भी बहुत लिखा है, किन्तु यहां इतना ही पर्याप्त है, अब जरा इनके कलि-काल सर्वज्ञ श्री