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________________ ( 150) सेज वाला, रथ, पर्यक, पालखी, ऊँट, घोड़ा प्रमुख साथ लेवे, तथा श्रीसंघ की रक्षा वास्ते बड़े योद्धों को नोकर रक्खें योद्धों को कवच अंगकादि उपस्कर देवे, तथा गीत नाटक वाजिंत्रादि सामग्री मेलवे"......"फूल घर कदली घरादि महापूजा करे....." नाना प्रकार की वस्तु फल एक सौ पाठ, चौवीस, व्यासी, बावन, बहत्तरादि ढोवे, सर्व भक्ष भोजन के थाल ढोवे। (पृ. 474) 6) सुन्दर अंगी, पत्र भंगी, सर्वाङ्गाभरण, पुष्पगृह, कदली गृह, पूतली पाणी के यंत्रादि की रचना करे, तथा नाना गीत नृत्यादि उत्सव से महापूजा रात्रि जागरण करे"" ..." तथा तीर्थ की प्रभावना वास्ते बाजे गाजे प्रौढाडम्बर से गुरु का प्रवेश करावे / (पृ० 474) (10) श्री संघ की भक्ति में- 'सुगन्धित फूल भक्ति से नारियलादि विविध तांबूल प्रदान रूप भक्ति करे' (पृ० 475) सुझ बन्धुत्रो ! देखा मूर्ति पूजक प्राचार्य श्री विजयानन्दजी के धार्मिक प्रवचन-धर्म ग्रन्थ के धार्मिक विधान का नमूना? क्या ऐसा उल्लेख जैन साधु कर सकते हैं ? क्या इसमें से एक बात भी किसी जैनागम से प्रमाणित हो सकती है? नहीं कदापि नहीं। .. फल, फूल, पत्रादि तोड़े, कदली गृह बनावे, स्नान करे, मैथुन सेवन कर स्नान करे, गाड़े, घोड़े सैनिक, शस्त्र, डेरा, तम्बू, चरू, कड़ाही, आदि साथ ले, गीत, नृत्य वाजिंत्रादि करे फवारे छोड़े, तांबूल प्रदान करे, आदि 2 बातों में किस धर्म की प्ररूपणा हुई। इसमें कौनसा आत्महित है। ऐसा प्रत्यक्ष
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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