SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (146) (3) मैथुन सेवके नथा वमन करके इन दोनों में कछुक देर पीछे स्नान करे। (पृ० 400) (4) देव पूजा के वास्ते गृहस्थ को स्नान करना कहा है, तथा शरीर के चैतन्य सुख के वास्ते भी स्नान है। (पृ०४००) (5) सूके हुए फूलों से पूजा न करे, तथा जो फूल धरती में गिरा होवे तथा जिसकी पांखड़ी सड़गई होवे,नीच लोगों का जिसको स्पर्श हुआ होवे, जो शुभ न होवे, जो विकले हुए न होवें."रात को बासी रहे, मकड़ी के जाले वाले, जो देखने में अच्छे न लगे, दुर्गध वाले, सुगंध रहित, खट्टी गंध वाले....."ऐसे फूलों से जिनदेव की पूजा न करणी। (पृ० 413) (6) मन्दिर में मकड़ी के जाले लगे हों उनके उतारने की विधि बताते हुए लिखते हैं कि साधु नोकरों की निय॑न्छना करें."पीछे जयणा से साधु आप दूर करे। (पृ० 417) (7) देव के आगे दीवा बाले......."देवका चन्दन देव का जल""""(पृ० 426) (6) संग निकालते समय साथ में लेने का सामान आदि का विधान भी देखिये आडम्बर सहित बड़ा चरु,घड़ा, थाल, डेरा, तम्बू, कहाहियां साथ लेवे, चलतां कूपादिक को सज करे, तथा गाड़ा
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy