________________ (127 ) श्रय इन लोगों के बताये हुए "महिया" शब्द पर विचार करते हैं:___ आवश्यक हरिभद्रसूरि की वृत्ति वाले में यह स्पष्ट उल्लेख है कि -- "महिया" शब्द पाठान्तर का है, मूल पाठ तो है "मइया' जिसका अर्थ होता है 'मेरे द्वारा' (मेरे द्वारा वंदन स्तुति किये हुए) वृत्तिकार लिखते हैं कि 'मइश्रा-मयका, महिया इतिच पाठान्तरं,' जबकि मू० पू० समाज के मान्य और लगभग 1200 सौ घर्षों के पूर्व होगये ऐसे प्राचार्य ही इस 'महिया' शब्द को पाठान्तर मानते हैं, तब ऐसी हालत में इस विषय पर अधिक उहापोह करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। जो 'महिया शब्द हरिभद्रसूरि के समय तक पाठान्तर में माना जाता था वह पीछे के प्राचार्यों द्वारा 'महा' को मूल से हटाकर स्वयं मूल रूप बन गया। फिर भी हम प्रश्नकार के संतोष के लिए थोड़ी देर के वास्ते 'महिया' शब्द को मूल का ही मानलें तो भी इस शब्द का अर्थ-पुष्पादि से पूजा करना ऐसा प्रागम सम्मत नहीं हो सकता, क्योंकि...... ...1 __ क्योंकि यह 'महिमा' शब्द 'चतुर्विंशतिस्तव' (लोगस्स) का है, इस स्तव से चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की जाती है, यह संपूर्ण पाठ और इसका एक 2 वाक्य स्तुति से ही भरा है. इसके किसी भी शब्द से किसी अन्य द्रव्य से पूजा करने का अर्थ नहीं निकलता, केवल मन, वाणी, शरीर द्वारा ही भक्ति करने का यह सारा पाठ है। अब यह महिया शब्द जहां पाया है उसके पहले के दो शब्द और लिखकर इसका सत्य अर्थ बताया जाता है,-.