________________ ( 125) में फल, फूल, पत्रादि तोड़ने को जीव अदत्त कहते हैं, देखिये__'दूसरा सचित्त वस्तु अर्थात् जीव वाली वस्तु फूल, फल, बीज, गुच्छा, पत्र, कंद, मूलादिक तथा बकरा, गाय, सुभरादिक इनको तोड़े, छेदे, भेदे, काटे सो जीव अदत्त कहिये, क्योंकि फूलादि जीवों ने अपने शरीर के छेदने भेदने की आज्ञा नहीं दीनी है, जो तुम हमको छेदो भेदो, इस वास्ते इसका नाम जीव अदत्त है। विजयानन्दसूरिजी के उक्त सत्य कथनानुसार पत्र फूलादि का तोड़ना जीव अदत्त है और अदत्त ग्रहण तीसरे महाव्रत का भङ्गकर्ता है, इसके सिवाय प्राणी हिंसा होने से प्रथम अहिंसा बत का भी नाश होता है, इस प्रकार यह पुष्प पूजा स्पष्ट (प्रत्यक्ष ) महाव्रतों की घातक है, ऐसी महावतों के मूल में कुठाराघात करने वाली पूजा का उपदेश, आदेश और अनुमोदन महाव्रती श्रमण तो कदापि नहीं कर सकते / न हिंसा में दया बताने वाला पापयुक्त लेख ही लिख सकते हैं। इन बेचारे निरपराध पुष्प के जीवों के प्रथम तो भोगी और इत्र तेलादि बनाने वाले ही शत्रु थे, जिनसे रक्षा पाने के लिए इनकी दृष्टि त्यागियों पर थी, क्योंकि जैन के त्यागी भ्रमण छः कायजीवों के रक्षक, पीहर होते हैं, वे स्वयं हिंसा नहीं करते हैं इतना ही नहीं किन्तु हिंसा करने वालों से भी जीवों की रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं, अतएव त्यागी म.