________________ जैनधर्ममा मूर्तिपूजानो विरोध दाखल कर्यो ए वस्तुना निरू. पण माटेज स्थानकवासी जैन पत्रे या पुस्तक प्रगट कर्यु होय तेम स्पष्ट जणाइ श्रावे छ। "सूरि महात्माअोना बहेकाववाथी' 'शुद्ध श्रद्ध थी पतित प्रात्मारामजी' 'भणावी राखेला तोता' 'श्रा गरबड़ गोटालो सावध गुरु घंटालो एज कर्यो' 'मूर्ति वांदवानो अडंगो लगायो छे' 'मूर्तिपूजा करवान शास्त्रीय विधान छे एवी डींग मारवीए मूर्खता छे' 'स्वामीजीए (आत्मारामजीए) डींग मारी छे तेमनुं कथन मिथ्या छे' 'चैत्यशब्द थी व्हेकी जइने मूर्तिपूजा, पाखण्ड सिद्ध कर, ए अन्याय छे' 'नियुक्तिनो अर्थ करतां आ स्थानकमार्गी पण्डित पोतानी पण्डिताइ बतावे छे' 'निर्गता युक्तिर्यस्याः नियुक्ति' 'खरी रीते स्थानकमार्गी समाज व्याकरणने व्याधिकरण माने छे एनाज श्रा प्रताप छे" . "श्रावी रीते श्रेणिक राजानु हमेशा 108 स्वर्ण जवथी पूजवानु कथन गपोड़ शस्त्र छे' 'महानि शिथमा मूर्तिपूजानुं खण्डन तथा स्वार्थीपोना पोकलो खुल्ला करवामां श्राव्यां छे' 'मूर्तिनी गुणगाथाओं कल्पित कहाणीयोज छे' प्रा देशमा गुलामीनू आगमन प्रायः मूर्तिपूजानी अधिकता थी थयुं छे' 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुषना रचनार ने एबुं कयुं दिव्य ज्ञान प्रगट थयुं हतुं के जेथी तेमणे मरिचि ने वन्दन करवानी गप्प हाकी ? आ तो केवल गप्प सिवाय बीजु कशु नथी' 'पा मान्यता ( पूजानी ) एकान्त मिथ्यात्वोपासक तथा धर्म घातक छे' 'अरे स्वार्थीजनों! मिथ्या कुतर्क उत्पन्न करी हिंसाने केम प्रोत्साहन पापो छो'? 'सूरिश्रोए प्रा अन्धेर खातुं केम चलाव्यु'?