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________________ प्राजथी त्रण वर्ष पहेलां स्थानकवासी समाजना मनाता यशस्वी लेखक संतबालजीए स्थानकवासी कोन्फ्रेन्सना मुखपत्र 'जैन प्रकाशमां' श्रीमान् लोकाशाहना नामनी लांबी लेखमाला लखी हती ते वखते पण तेमणे लख्युं हतुं के लोंकाशाहनुं जीवन चरित्र नथी मलतुं छतांय तेमणे स्थानक मार्गी समाज ने पसंद पड़े तेवू सुन्दर कल्पनाचित्र दोरी ए चरित्र लांबी लेखमाला रुपे रजु कयु हतुं, अने तेमां केटलाक श्वेताम्बर प्राचार्यो माटे अमर्यादित ल खाण लखायेल! जेनो सुन्दर जवाब श्वे० समाजना विद्वान् साधुओए अने श्रावको प प्राप्यो हतो, अने चार एबुं तीव्र स्वरूप लीधुं हतुं के उभय पक्षने नजीक श्राववाना अाजे जे प्रयासो थाय छे ते ' शुभ मुदार वर्षो माटे दूरने दूर ठेलाय / ___आ कड़वो प्रसंग हजु क्षितिज पर थी दूर थतो आवे छे त्यां ए वितण्डावादमांज शासन सेवा होय तेम मानीने के गमे ते आशय थी अाजे श्रा पुस्तक प्रकट करी जैन समाजना दुर्भाग्यनो एक कड़वो प्रसंग उभो कर्यो छे। श्रा पुस्तक वांचनार कोई पण भाई स्हेजे कहेशे के प्रावा "लोकाशाह मत-समर्थन" ना नाम नीचे श्वेताम्बर प्राचार्यो नी पेट भरीने निन्दा करवामां आवी छे, मूर्तिपूजार्नुज मर्यादित शैलीए खण्डन करवामां आव्युं छे, मूर्तिपूजा, खंडन ए कांई भारतनी प्राचीन आर्य संस्कृति नथी, इस्लामी समयथी जगतमां मूर्तिपूजानो विरोध शुरु थयो अने ते अनार्य संस्कृतिना फल स्वरूप इस्लामी संस्कृतिमांज उत्पन्न थयेल इस्लामी युगमांज फलेल फूलेल ढुंढक मतना उपासकोए
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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