________________ मू० पू० जैन पत्र की विरोधी पालाचना "जैन" भावनगर ता. ८अगस्त 1637 पृष्ठ 733 अभ्यास अने अवलोकन अन्तर कलेश नोतरतुं ए योग्य प्रकाशन .. [ले० अभ्यासी ] . आजे एक मारा मित्रे स्थानकवासी जैन पत्रनी चौथा वर्षनी भेटनुं पुस्तक मने मोकल्युं छे, या पुस्तकनुं नाम छे "लोकाशाह मत-समर्थन". पुस्तकनुं नाम जोता मने घणीज खुशाली उपजी के ठीक थयु, श्रा पुस्तक लेखके लोकाशाहसंबंधे प्राचीन अर्वाचीन प्रमाणो शोधी काढी खास लोकाशाह नुं मन्तव्य प्रकशित कर्यु हशे, पाखुं पुस्तक उत्साह भरे पुरु वांची नाख्युं परन्तु श्राखा पुस्तकमां क्यांय लोकाशाहना मत नुं समर्थन नथी, समर्थन तो दूर रह्य किन्तु लोकाशाहना एक पण सिद्धांत नुं विधान पण नथी कर्यु. आपुस्तक वाचवा पछी मने लाग्युं के लोकाशाहनो कोई सिद्धांतज नथी, कवि. वर लावण्यसमये तो खास लख्युं हतुं के लोकाशाहे पूजा प्रतिक्रमण, सामायिक, पौषध, दया आदिनो लोपज कों छे, श्रा बधानो लोप लोकाशाहे को छे, तो पछी तेना मतनुं समर्थन शानुं थाय ? एटले भाई रतनलाल ने शोधवा नीकलबुं पड्यं छे, के लोंकानो मत शो ? अन्ते तेमां निराशा सांपड़वाथी तेओने श्वेताम्बर मत निन्दा पुराण रचवू पड्य होय एम लागे छ।