________________ -क्या जिन मूर्ति जिन समान है ? प्रश्न--जिन प्रतिमा जिन समान है ऐसा सूत्र में कहा है, फिर श्राप क्यों नहीं मानते ? उत्तर-उक्त कथन भी सत्य से परे है। श्राश्चर्य तो / बात का है कि जब मूर्ति पूजा करने की ही प्रभु आशा तब यह प्रश्न ही कैसे उपस्थित हो सकता है ? वास्तव यह कथन हमारे मूर्ति-पूजक बन्धुओं ने अतिशयोक्ति ही किया है। इसी प्रकार श्री विजयानन्द सूरिजी ने भी म्यक्त्व शल्योद्धार' में इस विषय को सिद्ध करने के लिये र्थ प्रयास किया है, वे लिखते हैं कि साक्षात् प्रभु को स्कार करते समय देवयं चेयं पज्जुवासामि कहते हैं, सका अर्थ यह होता है कि देव सम्बन्धी चैत्य सो जिन प्रतिमा तिसकी तरह सेवा i, इस प्रकार मनमाना अर्थ किया है, श्रीमान् विजयानन्द ने तो सम्यक्त्व शल्योद्धार चतुर्थावृत्ति पृ० 103 में तक लिख डाला है कि-'भाषतीर्थकर से भी जिन प्रतिमा