________________ ( 112) धारी साधु हो जाता है तब वह श्रावक का द्रव्य निक्षेप है, फिर भी गुण वृद्धि की अपेक्षा वन्दनीय है, किन्तु वही साधु जो श्रावक से साधु बना था कर्मों के जोग से संयम मार्ग से पतित हो जाय तो श्रावक पद से भी वन्दनीय नहीं रहेगा क्यों कि वन्दन, नमन का स्थान है गुण, और उन श्रुत चा. रित्र रूप गुणों की न्यूनता वाला बन जाने से वह आत्मा वंद. नीय नहीं रहा, इससे विपरीत जहां गुण वृद्धि होती है वह भूत और वर्तमान दोनों काल में वन्दनीय ही होता है। ___इस विषय में यदि आप सांसारिक उदाहरण भी देखना चाहें तो बहुत मिल सकते हैं अधिक नहीं केवल एक ही उदाहरण यहां दिया जाता है, देखिये___ वर्तमान में जितने पदच्युत राजा और सम्राट हैं वे पहले तो प्रायः युवराज रहे होंगे, और युवराज के बाद राजा या स. म्राट बने जो प्रजा युवराज अवस्था में उन्हें मान देती थी, वही राजा होने पर भी मान देती रही, बल्कि पहले से भी अधिक किन्तु काल चक्र के फेर से वे राज्यच्यत हो गयेतो युवराज अवस्था वाला आदर भी उनके भाग्य में नहीं रहा, आज उनकी क्या हालत है यह तो प्रायः सभी जानते - यहां निर्विवाद सिद्ध हुअा कि मान पूजा गुणों की ही अपेक्षा रखती है, इस लिये गुण वृद्धि रूप सिद्धावस्था को लेकर गुण रहित द्रव्य निक्षेप के साथ उसकी तुलना करके सामान्य द्रव्य निक्षेप को वन्दनीय ठहराना किसी प्रकार योग्य नहीं है।