________________ २७-सिद्ध हुए तीर्थंकर और द्रव्य निक्षेप प्रश्न-चौवीस तीर्थंकर वर्तमान में सिद्ध हो चुके हैं उनकी आत्मा अब अरिहंत या तीर्थकर के द्रव्य निक्षेप में ही है उन सिद्धों को अब अरिहंत या तीर्थकर मानकर वन्दना स्तुति करते हो, क्या यह द्रव्य निक्षेप का वन्दन नहीं है? उत्तर-उक्त कथन के समाधान में यह समझना चाहिये कि जो तीर्थकर या अरिहंत सिद्ध हो चुके हैं उनकी अभी वन्दना या स्तुति करते हैं वह द्रव्य निक्षेप में नहीं है, क्योंकि जो आत्माश्रित भाव-गुण अर्हतावस्था में थे वे सिद्धावस्था में भी कायम हैं, सिद्धावस्था में तो और मी गुणवृद्धि ही हुई है / फिर उन्हें सामान्य द्रव्य निक्षेप से कैसे कह सकते हैं ? गुण पूजकों के लिये तो यह प्रश्न ही अनुचित है। ___ सिद्धावस्था की आत्मा अरिहंत दशा का मूल द्रव्य होकर मी द्रव्य निक्षेप से विशेषता रखता है, कारण यहां गुणों से सम्बन्ध है जिस प्रकार अणुवत वाला श्रावक जब महाव्रत