SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 108 ) कर इतना ही कहना चाहते हैं कि ऐसे ग्रंथों के प्रमाण यहां कुछ भी कार्य साधक नहीं हो सकते, जो ग्रंथ उभय मान्य हो वही प्रमाण में रक्खे जाने चाहिए अन्यथा प्रमाणदाता को विफल मनोरथ होना पड़ता है। ___ अन्सकृतदशांग में लिखा कि बाइसवें तीर्थंकर प्रभु ने श्री. कृष्ण वासुदेव को आगामी चोवीसी में वारहवें तीर्थंकर होने का भविष्य सुनाया, यह सुनकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए जंघा पर कर-स्फोट कर सिंहनाद किया। इससे अनुमान होता है कि उस समय समव करण-स्थित चतुर्विध संघ तो ठीक पर कई योजन दूर र.क यह आवाज़ पहुंची होगी और समव रूरण में तो सभी को इसका कारण मालूम हो गया कि यह ध्वनि श्रीकृष्ण ने भविष्य कथन सुनकर प्रसन्नता से की है। जब जनता और प्रभु के साधु साध्वी यह जान गये कि-श्रीकृष्ण भविष्य में प्रभु की तरह ही तीर्थकर होंगे। तब सभी श्रमणों को और गृहस्थों को चाहिए था कि वे भी आपके भरतेश्वर की तरह कृष्ण को वन्दना नमस्कार करते ? क्योंकि वे भी तो मरीचि की तरह द्रव्य तीर्थकर थे ? किन्तु जब हम अन्तकृद्दशांग देखते हैं, तब उर में सिंहनाद आदि का तो वर्णन है, पर वन्दनादि के लिए तो बिलकुल मौन ही पाया जाता है। यही हाल ठाणांग सूत्र के नवमस्थान में श्रेणिक के भविष्य कथन का है / जब तीर्थकर भाषित सूत्रों में यह बात प्रकरण से भी नहीं मिलती तो अन्य ग्रन्थों में कैसे और कहां से आई ? और त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र के रचयिता ने किस दिव्य ज्ञान द्वारा यह सब जाना ? किसी भी बात को कल्पना के जरिये विद्वत्ता पूर्वक रचडालने से ही वह ऐतिहासिक नहीं हो सकती / इस प्रमाण के बाधक कुछ उदाहरण भी दिये जाते हैं।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy