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________________ २५-'चतुर्विंशतिस्तव और द्रव्यानिक्षेप प्रश्न-प्रथम तीर्थंकर के समय उनके शासनाश्रित च. तुर्विध संघ प्रतिक्रमण के द्वितीय श्रावश्यक में 'चतुर्विंशतिस्तव' कहता था, उस समय अन्य तेवीस तीर्थकर चारोंगति में भ्रमण करते थे, इससे सिद्ध हुश्रा कि-द्रव्य निक्षेप वंदनीय पूजनीय है, क्योंकि-प्रथम तीर्थंकर के समय भविष्य के 23 तीर्थकर द्रव्य निक्षेप में थे। अब बताइये, इसमें तो आप भी सहमत होंगे? उत्तर-यह तर्क भी निष्प्राण है। प्रथम जिनेश्वर का शासनाश्रित संघ आज की तरह चतुर्विंशतिस्तव कहता हो इसमें कोई प्रमाण नहीं है, खाली मनःकल्पित युक्ति लगाना योग्य नहीं है। प्रथम तीर्थकर का संघ तो क्या, पर किसी मी तीर्थकर के संघ में द्वितीयावश्यक में उतने ही तीर्थंकरों की स्तुति की जाती, जितने कि हो चुके हों। भविष्य में होने वाले तीर्थकरों की स्तुति नहीं की जाती। . द्वितीयावश्यक का नाम भी सूत्र में प्रारंभ से चतुर्विंशतिस्तव नहीं है, यह नाम तो अन्तिम (२४वें ) तीर्थकर महा
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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