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________________ (103 ) (उ) भूतपूर्व एबीसीनियन सम्राट रासतफारी और अफगान सम्राट अमानुल्लाखान पदच्युत होने से द्रव्य निक्षेप में सम्राट अवश्य हैं / उक्त पदच्युत सम्राट वर्तमान में सम्राट तरीके कार्य साधक हो सकते हैं क्या ? जो थोड़े वर्ष पूर्व अपने माम्राज्य के अन्दर अपनी अखण्ड आज्ञा चलाते थे। जिनके संकेत मात्र में अनेकों के धन जन का हित अहित रहा हुआ था, धनवान को निर्धन, निर्धन को अमीर बन्दी को मुक्त मुक्त को बन्दी, कर देते थे, रोते को हंसाना और हंसते को रुलाना प्रायः उनके अधिकार में था, लाखों करोड़ों के जो भाग्य विधाता और शासक कहाते थे किन्तु वे ही मनुष्य थोड़े ही दिन में ( भावनिक्षेप के निकल जाने पर) केवल पूर्व स्मृति के भूत कालीन भाव निक्षेप के भाजन द्रव्य निक्षेप रह जाते है तब उन्हें कोई पूछ ता ही नहीं, आज उनकी आज्ञा को माधारण मनुष्य भी चाहे तो ठुकरा सकता है, आज वे सम्राट नहीं किन्तु किसी सम्राट की प्रजा के समान रह गये हैं। इसी प्रकार भूत-पूर्व इन्दौर तथा देवास के महाराजा भी वर्तमान में पदच्युत होने से मात्र द्रव्यनिक्षेप ही रह गये हैं। इस तरह अनुभव से भी द्रव्य निक्षेप वन्दीय पूजनीय नहीं हो सकता। ___इतने प्रबल उदाहरणों से स्पष्ट सिद्ध होगया कि द्रव्य निक्षेप भी नाम और स्थापना की तरह अवन्दनीय है। PES
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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