________________ ( 102) देखिये द्रव्य निक्षेप को वन्दनीय मानने में निम्न बाधक कारण उपस्थित होते हैं (अ) गृहस्थावस्था में रहें हुए तीर्थंकर प्रभु अपने भोगावली कर्मानुसार गृहस्थ सम्बन्धी सभी कार्य जैसे स्नान, मर्दन, विलेपन, विवाह, मैथुन आदि करते हैं, उस समय वे गुणपूजकों के लिए भाव निक्षेप की तरह वन्दनीय कैसे हो सकते हैं ? __ (आ) जो वर्तमान में वैरागी होकर भविष्य में साधु होने वाला है, जिसके लिए दीक्षा का मुहूर्त निश्चित हो चुका है दो चार घड़ी में ही महाव्रती हो जायगा विश्वास पात्र भी है वह द्रव्य निक्षेप से साधु अवश्य है, किन्तु दीक्षा लेने के पूर्व भाव निक्षेप वाले साधु की तरह उसके लिये भी वन्दन नमस्कारादि क्रिया क्यों नहीं की जाती ? वाहन पर चढ़ाकर क्यों फिराया जाता है / भोजन का निमंत्रण क्यों दिया जाता है / कारण यही कि वह अभी भाव निक्षेप से साधु नहीं है / गृहस्थ है। (इ) द्रव्यलिंगी आचार भ्रष्ट ऐसे साधु का संघ बहिष्कार क्यों कर देता है ? क्या वह द्रव्य निक्षेप में नहीं है / अवश्य है, किन्तु भाव शून्य है अतएव आदरणीय नहीं होता। __ (ई) जो वर्तमान में युवराज है भविष्य में राजा या सम्राट होंगे, वे सम्राट की तरह राजाज्ञा पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करते। राज्य के अन्य जागीरदार, अधिकारी वर्ग आदि राजा या सम्राट तरीके उनको भेट नज़र आदि क्यों नहीं करते। वर्तमान युवराज को अधिकार सम्पन्न गजा क्यों नहीं माना जाता। तो यही उत्तर होगा कि उसमें भावनिक्षेप नहीं है। हाँ युवराज का भावनिदेव उसमें है, इससे इस पद के योग्य मान पा सकेगा किन्तु अधिक नहीं।