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________________ ( 6 ) में ऐसे कितने महापुरुष हैं कि जिन्होंने मोह को जीत लिया हो? आप एक निर्विकारी छोटे बच्चे को भी देखेंगे तो वह भी अपनी प्रिय वस्तु पर मोह रक्खेगा। अप्रिय से दूर रहेगा। और वही अबोध बालक युवावस्था प्राप्त होते ही बिना किसी बाह्य शिक्षा के ही अपने मोहोदय के कारण काम भोजन बन जायगा / हमने पहले ही प्रश्न के उत्तर में यह बता दिया था कि-वीतरागी विभूतियां संसार में अंगुली पर गिनी जाय इतनी भी मुश्किल से मिलेगी किन्तु इस कामदेव के भक्त तो सभी जगह देव मनुष्य तिर्यंच और नर्क गति में असंख्य ही नहीं अनन्त होने से इस विश्वदेव का शासन अविच्छिन्न और सर्वत्र है / अतएव स्त्री चित्र से काम जागृत होना सहज और सरल है, यह तो चित्र देखने के पूर्व भी हर समय मानव मानस में व्यक्त या अव्यक्त रूप से रहा ही हुआ है चित्र दर्शन से अव्यक्त रहा हुआ वह काम राख में दबी हुई अग्नि की तरह उदय भाव में आ जाता है / इसको उदय भाव में लाने के लिये तो इशारा मात्र ही पर्याप्त है, किसी विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु वैराग्य प्राप्त करने के लिए तो भारी प्रयत्न करने पर भी असर होना कठिन है। उदाहरण के लिए सुनिये: (1) एक समर्थ विद्वान, प्रखरवक्ता, त्यागी मुनिराज अपनी ओजस्वी और असरकारक वाणी द्वारा वैराग्योत्पादक उपदेश देकर श्रोताओं के हृदय में वैराग्य भावनाओं का संचार कर रहे हैं, श्रोता भी उपदेश के अचूक प्रभाव से वैराग्य रंग में रंगकर अपना ध्यान केवल वक्ता महोदय की मोर ही लगाए,
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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