________________ ( 5 ) (11) सदानन्दी जैन मुनि श्री छोटालालजी महाराज एक पत्र द्वारा निम्न प्रकार से स्था. जैन के संपादक को लिखते हैं-- // अभिनन्दन // पोतानी महत्ता वधारवामां अंतराय पड़े, अने चैतन्य पूजानी महत्ता वधे ते मूर्तिपूजक समाजना साधु महापुरुषों अने गृहस्थों ने कोई पण रीते रुचतुं न होवा थी कोई न कोई बहानुं मलतां स्थानकवासी समाज ऊपर भाषानो संयम गुमावीने अनेक प्रकारना आक्षेपो बारम्बार कर्यांज करे छे, अने जाणे स्थानकवासी समाजनुं अस्तित्वज मटाडी दे, होय तेवो प्रयत्न सेवी रहेल छ। श्रा अाक्रमणनो न्याय पुरःसर भाषासमिति ने साचवी ने पण जवाब आपवा जेटलीए अमारी समाजना पण्डितो विद्वानो, अने नवी नवी मेलवेली पदवीना पदवीधरो ने जराए फुरसद नथी, मोटे भागे अपवाद सिवाय दरेक ने पोताना मान पान वधारवानी अने वधुमां पोताना नाना पाड़ाने येन केन प्रकारे जालवी राखवानी अने एथीए वधु मारा जेवाने अनेक अतिशयोक्ति भरेला पोतानी कीर्तिना बणगा फुकाववानी प्रवृत्ति प्राडे जराए फुरसद मलती नथी, एवा वखते--