________________ (71) ना शुरुअात मां मनने खुश राखनार छ, पछी प्रभु महावीर नी पगथी ते मस्तक पर्यंत सर्व आकृति एक चितारो जेम चितरतो होय तेम हलवे हलवे ते प्राकृति नुं चित्र तमारा हृदय पट पर चितरो, श्रालेखो, अनुभवो प्राकृति ने तमे स्पष्ट पणे देखता हो तेटली प्रबल कल्पना थो मनमा अालेखी तेना उपर तमारा मनने स्थिर करी राखो मुहूर्त पर्यंत ते उपर स्थिर थथां वरेखर एकाग्रता थशे' / इसके सिवाय इसी योग शास्त्र के नवम प्रकाश में रुपस्थ ध्यान के वर्णन में प्रारम्भ के सात श्लोकों द्वारा पृ० 371 में ध्यान करने की विधि इस प्रकार बताई गई है। मोक्ष श्रीसंमुखीनस्य, विध्वस्ताखिल कर्मणः / चतुर्मुरूस्य निःशेष, भुवनामयदायिनः // 1 // इन्दु मण्डल शंकाशच्छत्र त्रितय शालिनः॥ लमद् भामण्डला भोग विडंबित विवस्वतः // 2 // दिव्य दुंदुभि निर्घोष गीत साम्राज्यसम्पदः रणद् द्विरेफ झंकार मुखराशोकशोभिनः // 3 // सिंहासन निषण्णस्य वीज्य मानस्य चामरैः / / सुरासुर शिरोत्न, दीप्तपादनखाते // 4 // दिव्य पुष्पोत्करा कीर्ण, संकीर्णपरिषदभुवः / उत्कंधरेगकुलैः पीयमानकलध्वनैः ! // 5 // शात वैरेभ सिंहादि, समुपासित संनिधः /