________________ ( 70) करे, ज्ञानी पुरुषों की स्तुति करे, इस प्रकार सहज ही में ध्यान हो सकता है, और स्वयं ध्येय ही आलंबन बन जाता है, किसी अन्य प्रालंबन की आवश्यकता नहीं रहती। इसके सिवाय अनित्यादि बारह प्रकार की भावनाएं, प्रमोदादि चार अन्य भावनाएं, प्राणी मात्र का शुभ एवं हितचिन्तक, स्वा. त्म निन्दा, स्वदोष निरीक्षण प्रादि किसी एक ही विषय को लेकर यथाशक्य मनन करने का प्रयत्न किया जाय और ऐसे प्रयत्न में सदैव उतरोत्तर वृद्धि की जाय तो अपूर्व आनन्द प्राप्त हो कर जीव का उत्थान एवं कल्याण हो सकता है। ऐसी एक 2 भावना से कितने ही प्राणी संसारसमुद्र से पार होकर अनन्त सुख के भोक्ता बन चुके हैं। ऐसे धर्म ध्यानों में मूर्ति की किचित् मात्र भी आवश्यकता नहीं, ध्येय स्वयं प्रालंबन बन जाता है। शरीर को लक्ष्य कर ध्यान करने वाले को श्री केशरविजयजी गणिकृत गुजराती भाषांतर वाली चौथी श्रावृ त्ति के योगशास्त्रपृ० 346 में प्राकृति ऊपर एकाग्रता' विषयक निम्न लेख को पढ़ना चाहिये, __ "कोई पण पूज्य पुरुष उपर भक्ति वाला माणसो घणी सहेलाई थी एकाग्रता करी शके छ धारो के तमारी खरी भक्ति नी लागणी भगवान महावीर देव उपर छे तेश्रो तेम नी छद्मस्थावस्था मां राजगृहीनी पासे आवेला वैभार गिरि नी पहाड़नीएक गीच झाड़ीवाला प्रदेश मां आत्म ध्यान मां लीन थई उभेलाछे प्रास्थले वैभार गिरिगीच झाड़ी सरिताना प्रवाही नोधोध अनेतेनी आजु बाजु नो हरियालो शान्त श्रने रमणीय प्रदेश पासर्व तमारा मानसिक विचारो थी फल्यो, आ कल्प