________________ ११-क्या शास्त्रों का उपयोग करना भी मू० पू० है ? प्रश्न-शास्त्र को जिनवाणी और ईश्वर वाक्य मान कर उनको सिर पर चढाने वाले आप मूर्ति पूजा का विरोध कैसे कर सकते हैं ? उत्तर--यह प्रश्न भी वस्तुस्थिति की अनभिज्ञता का परिचय देने वाला है, क्योंकि कोई भी समझदार मनुष्य कागज और स्याई के बने हुए शास्त्रों को ही जिनवाणी या ईश्वर वाक्य नहीं मानता, न पुस्तक पन्ने ही सर्वज्ञ बचन है, हां पुस्तक रूप में लिखे हुए शास्त्र पढ़ने या भूले हुए को याद कराने में भी साधन रूप अवश्य होते हैं और उनके उपयोग की मर्यादा भी पढ़ने पढाने तक ही है किन्तु उनको ही जिनवाणी मान कर वन्दन नमन करना या सिर पर उठा कर फिरना यह तो केवल अन्ध भक्ति ही है क्योंकि वन्दनादि सत्कार शानदाता प्रात्मा का ही किया जाता है। हमा री इस मान्यता के अनुसार हमारे मूर्ति-पूजक बन्धु श्री यति