________________ // ॐ सिद्धेभ्यः // धर्म सुधारक-महान् क्रान्तिकार श्रीमान् लोकाशाह का संक्षिप्त परिचय न्नति और अवनति यह दो मुख्य प्रव. स्थाएँ अनादिकाल से चली आती हैं। जो जाति, धर्म या देश कभी उन्नत अवस्था में थे, वे समय के फेर से अवनत अवस्था को भी प्राप्त हुए, इसी प्रकार जो अस्ताचल HERECEIAS में दिखाई देते थे. वे उन्नति के शिखर पर भी पहुँचे, एकसी अवस्था किसी की नहीं रहती ! जैन इतिहास को जानने वाले अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी की.