________________ ( 27 ) (फैलना) आत्मा में मानोगे, तो वह अवयवि होनेसे विनाशी मानना पडेगा, और दो अवयवि तो कभी एक देशमे ठहर नहीं सकते, इसलिये ऐसा झूठा प्रलाप मत करो कि आत्मा व्यापक नहीं है // 43 // और जब आत्मा निष्कर्मा होता है तब जैनीयोंके मत में वह उंचा चला जाता है, क्या इधर रहने में उसको कुच्छ भय है !, जो आत्मा निष्कर्मा है तो उसको कहिं भी रहने में हरज नहीं है, और आत्मा सकर्मक है तो ऊपर जानेसे भी क्या हुआ ? // 44 // इस उत्तर पक्ष में जो शास्त्रीजीने आत्मा का शरीर परिमाणत्वका खण्डन, आत्मव्यापकत्वका मण्डन किया है वह भी भ्रममूलक है, क्योंकि शास्त्रीजीने जो आपत्तियाँ आत्माका शरीर परिमाणमें दी है वे सब झूठी हैं, जो शास्त्रीजी कहते हैं कि जीव अपरिणामी कूटस्थ नित्य है. यह अनुभव, प्रमाण और वर्तमान विज्ञान से विरुद्ध है. वर्तमान विज्ञान ( सायन्स ) यह ही सिद्ध करता है कि दुनिया में कोई भी चीज केवल नित्य या अनित्य नहीं है. किन्तु सब पदार्थ नित्य, अनित्य उभय स्वरूप हैं यदि आत्मा को या कोई पदार्थको अपरिणामी नित्य माना जाय तो वह अपरिणामी कूटस्थ नित्य पदार्थ कभी एक भी क्रिया नहीं कर सकता. देखिये___ वस्तुनस्तावदर्थक्रियाकारित्वं लक्षणम् , तच्चैकान्तनित्यानित्यपक्षयोन घटते, अपच्युताऽनुत्पन्नस्थिरैकरूपो हि नित्यः,