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________________ 14 प्राकृतशब्दरूपावलिः हुस्वः संयोगे / / 8 / 1 / 84 // इत्यनेन ह्रस्वः / कगचजतदपयवां प्रायो लुक् / / 8 / 1 / 177 / / इत्यनेन पकारस्य लुकि सति / उइन्दो उइन्दा / इत्याद्यपि भवति / // अथ गोपेन्द्रशब्दः // एकवचनम् बहुवचनम् प्रथमा गोविन्दो गोविन्दा .. . इत्यादि कगचजेत्यादिना पकारे लुकि / गोइन्दो-गोइन्दा इत्याद्यपि / एवं गोविन्दशब्दस्यापि गोपेन्द्रवत् / // अथाऽवगूढशब्दः // एकवचनम् बहुवचनम् प्रथमा ओऊढो अवऊढो ' ओऊढा अवऊढा द्वितीया ओऊढं अवऊढं ... ओऊढे अवऊढे . ओऊढा अवऊढा तृतीया (ओऊढेणं अवऊढेणं / ओऊढेहि अवऊढेहि ओऊढेण अवऊढेण ( ओऊढेहिँ अवऊढेहिँ | ओऊढेहिं अवऊढेहिं पञ्चमी | ओऊढत्तो ओऊढाओ. ओऊढत्तो ओऊढाओ ओऊढाउ ओऊढाहि ओऊढाउ ओऊढाहि ओऊढाहिन्तो ओऊढा ओऊढेहि ओऊढाहिन्तो. अवऊढत्तो अवऊढाओ ओऊढेहिन्तो - ओऊढाअवऊढाउ अवऊढाहि सुन्तो ओऊढेसुन्तो | अवऊढाहिन्तो अवऊढा || पक्षे / अवऊढत्तो अवऊढाओ इत्यादि
SR No.004478
Book TitlePrakrit Shabda Rupavali
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorVajrasenvijay
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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