________________ 216 प्राकृतशब्दरूपावलिः पञ्चमी / मुणिणो मुणित्तो मुणीओ.: मुणित्तो मुणीओ मुणीउ मुणीउ मुणीहिन्तो मुणीहिन्तो मुणीसुन्तो . षष्ठी मुणिणो मुणिस्स मुणीणं मुणीण सप्तमी मुणिम्मि . . मुणीसुं मुणीसु संबोधनम् हे मुणी हे मुणि हे मुणउ. हे मुणओ हे मुणिणो. हे मुणी // अक्लीबे सौ / / 8 / 3 / 19 // इत्यनेन इदुतोऽक्लीबे सौ दीर्घः / केचित्तु दीर्घत्वं विकल्प्य तदभावपक्षे सेर्मादेशमपीच्छन्ति / यथा मुणि-वाउं-निहि-विहुं-इत्यादि / / अक्लीबे सौ // 8 / 3 / 19 / / इति इदुतोर्यो नित्यं प्राप्तो दीर्घः सः // डो दी? वा // 8 / 3 / 38 // इत्यनेन इदुतोः स्थाने विकल्प्यते। . ॥अथ गिरिशब्दः॥ एकवचनम् बहुवचनम् प्रथमा गिरी , गिरउ गिरओ / गिरिणो गिरी द्वितीया गिरि गिरिणो गिरी तृतीया गिरिणा गिरीहि गिरीहिँ गिरीहिं पञ्चमी / गिरिणो गिरित्तो गिरीओ | गिरीओ गिरीउ गिरित्तो गिरीउ गिरीहिन्तो / गिरीहिन्तो गिरीसुन्तो षष्ठी गिरिणो गिरिस्स गिरीणं गिरीण सप्तमी गिरिम्मि गिरीसुं गिरीसु संबोधनम् हे गिरी हे गिरि हे गिरउ हे गिरओ / हे गिरिणो हे गिरी