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________________ 154 प्राकृतशब्दरूपावलिः एकवचनम् ... बहुवचनम् / दक्खिणाहिन्तो दक्खिणे(हिन्तो दक्खिणासुन्तो / दक्खिणेसुन्तो षष्ठी दाहिणस्स दक्खिणस्स / दाहिणेसिं दक्खिणेसि . दाहिणाणं दाहिणाण . दक्खिणाणं. दक्खिणाण सप्तमी / दाहिणस्सि दाहिणम्मि | दाहिणेसुं दाहिणेसु दाहिणत्थ दाहिणहिं / दक्खिणेसुं दक्षिणेसु दक्खिणस्सि दक्खिणम्मि / दक्खिणत्थ दक्खिणहि संबोधनम् हे दाहिण हे दाहिणो हे दाहिणे हे दक्खिणे हे दक्खिण हे दक्खिणो ॥अथ स्वशब्दः॥ एकवचनम् बहुवचनम् प्रथमा सुवो द्वितीया सुवं सुवे सुवा तृतीया सुवेणं सुवेण (सुवेहि सुवेहिं सुवेहिँ पंचमी ( सुवत्तो सुवाओ सुवत्तो सुवाओ सुवाउ सुवाहि सुवाउ सुवाहि / सुवाहिन्तो सुवा सुवेहि सुवाहिन्तो सुवेहिन्तो सुवासुन्तो / सुवेसुन्तो सुवे
SR No.004478
Book TitlePrakrit Shabda Rupavali
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorVajrasenvijay
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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