________________ करके सुंदर प्रस्तावना भी लिख दी। ग्रंथ को मुद्रण योग्य बनाने का कार्य मैंने 'मातृ-आशिष संगणक यंत्र' के व्यवस्थापक, सूरत निवासी श्रीमान् हेमचंद्र सुमित कुमार कोचर जी को सौंपा / उन्होंने भी बहुत सावधानी से मेरे कार्य को ज्यों का त्यों इस रीति से तैयार कर दिया कि मुझे बार-बार प्रूफ देखने ही नहीं पडे / एक बार देखने पर ही मेरा काम पूरा हो गया। . आज ग्रंथ प्रकाशन की इस वेला मैं कृतज्ञता प्रकट करता हूं अपने स्वर्गीय विद्यागुरु जी श्रीमान् अमृतभाई मोहनलाल भोजक जी के प्रति तथा श्रीमान् लक्ष्मण भाई भोजक जी के प्रति जिनके सहयोग से मैं यह कार्य सरलता से संपन्न कर पाया। इस पल कृतज्ञता प्रकट करता हूं आचार्य श्रीमद् विजय मुनिचंद्र सूरीश्वर जी महाराज के प्रति जिन्होंने बहुत मेहनत से इतनी सुंदर प्रस्तावना लिख दी / इस पल वैसे ही सहयोग की अपेक्षा प्रकट करता हूं मुनिराज श्री हर्षद विजय जी महाराज, मुनिराज श्री चिदानंद विजय जी महाराज और मुनिराज श्री धर्मकीर्ति विजय जी से; जिनके सहयोग के बिना मैं संशोधन का कार्य कर ही न पाता; और इस पल श्रीमान् सुमित जी कोचर को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने कि इस कार्य को इस रीति से तैयार कर दिया कि मुझे बार-बार प्रूफ देखने की जरूरत ही न पडी। . ___ अंत में ग्रंथ संबंधी कार्य में छद्मस्थता, अज्ञानता, प्रमादादि दोषों के कारण मूल रचनाकार महापुरुष के आशय से विपरीत या न्यूनाधिक कुछ लिखा गया हो; तो उसके लिए मैं इस पल 'मिच्छा मि दुक्कडं-क्षमा मांगता हां, इस रचना और रचनाकार महोदय के विषय में श्रद्धेय आचार्य श्री 33