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________________ नहीं दे पाऊंगा। हां, तीनों प्रतियां प्राय: शुद्ध ही थीं। . .. अन्यान्य प्रवृत्तियों में व्यस्तता के कारण मैंने अपने उस कार्य के प्रति ध्यान ही नहीं दिया / मुझे भाग्यवान् श्रीमान् लक्ष्मण भाई भोजक जी एवं मेरे सहयोगी मुनि श्री चिदानंद विजय जी महाराज तथा मुनि श्री धर्मकीर्ति विजय जी महाराज समय-समय पर याद दिलाते रहे कि सटीक सूर्यसहस्रनाममाला छपवा लो; पूरी तैयार तो है ही। मगर मेरी ओर से विलंब ही होता रहा। मैंने श्रीमान् लक्ष्मण भाई भोजक जी से 'लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्या मंदिर, अहमदाबाद' के विशालतम ज्ञानभंडार में से 'सटीक सूर्यसहस्रनाम' ग्रंथ की एक प्रति के लिए निवेदना की तो उन्होंने सटीक सूर्यसहस्रनाम की तो नहीं मगर अन्य ‘सूर्यसहस्रनामा' प्रति नंबर 4742, और 'सूर्यसहस्रनामस्तोत्र' प्रति नंबर 5699 प्रतियां मुझे दिखाई और ज्ञानभंडार में इन दोनों ग्रथों की मात्र एक-एक ही प्रति की बात कही। मैंने उन दोनों प्रतियों की झेरोक्ष कॉपी मंगवा ली। मैंने अन्य ज्ञानभंडारों में से कोशिश की कि अन्य सूर्यसहस्रनाममाला ग्रंथ की प्रतियां मिल जाएं मगर नहीं मिल पाईं / अंतत: मैंने उन दो छोटी-छोटी कृतियों पर भी कार्य उन्हीं दो प्रतियों के आधार पर ज्यादा से ज्यादा सुंदर रीति से कर दिया और उनको भी आज सटीक सूर्यसहस्रनाममाला के साथ प्रकाशित करवा रहा हूं। वे दोनों कृतियां भी आज तक अप्रकाशित ही थीं / इस रीति से प्रस्तुत कृति में तीन ग्रंथ हैं। मैंने आचार्य श्रीमद् विजय मुनिचंद्र सूरीश्वर जी महाराज से अपना कार्य देखने के लिए विनंति की तो उन्होंने कार्य देखकर मुझे छपवाने की सलाह दी / मैंने उनसे प्रस्तावना लिखने का आग्रह किया। उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकारा और रचना तथा रचनाकार महापुरुष के विषय में गहन अभ्यास 32
SR No.004472
Book TitleSurya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri
PublisherJain Vidya Shodh Samsthan
Publication Year
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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