________________ // 552 // // 553 // // 554 // // 555 // // 556 // // 557 // आज्ञाप्यतामिदानीं च, यदस्माभिविधीयते / मुनिराह भवद्भिस्तत्, क्रियतां यत् कृतं मया निर्विण्णेन भवग्रामाद्, दीक्षा भवनिबर्हणी / मया गृहीता सा ग्राह्या, भवद्भिः सुखमिच्छुभिः नृपः प्राह वयं नाथ, त्वया यत्नेन बोधिताः / भवांस्तु बोधितः केन, स्वयंबुद्धोऽपि वा वद सूरिराह महाराज ! लघुतायै स्ववर्णनम् / ब्रुवे तथाऽपि सद्भूतं, त्वत्कुतूहलपूर्तये अस्तीह कौतुकैः पूर्णं, पुरं नाम्ना धरातलम् / राजा शुभविपाकोऽस्ति, तत्र तेजोदिवाकरः साधुता सुन्दरी तस्य, पुण्यसिंहस्थितौ दरी / तयोः सुतो बुधो जातो, विलसद्बुद्धिपाटवः क्रमेण वर्धमानोऽसौ, बभूव गुणरत्नभूः / . शीलेनालङ्कृतश्चारुरूपेण मकरध्वजः . भ्राता शुभविपाकस्य, महाऽनर्थकरः परः / तथाऽशुभविपाकोऽस्ति, देवी तस्यास्त्यसाधुता ताभ्यां विषाङ्कुरः क्रूरो, मन्दो नाम सुतोऽजनि / गुणहीनोऽपि मदवान्, वर्धमानो बभूव सः पितृव्यपुत्रभावेन, मैत्र्यभूद् बुधमन्दयोः / सर्वत्र सहितावेव, स्वैरं विचरतः स्म तौ इतश्च धीषणा नाम, पुरेऽस्त्यमलमानसे / शुभाभिप्रायभूपस्य, जयन्तीव सुता हरेः बुधेन परिणीता सा, गृहायाता स्वयंवरा / मनोरथौघैः सुषुवे, विचाराख्यः सुतस्तया 47 // 558 // // 559 // // 560 // // 561 // // 562 // // 563 //