________________ नृगतिर्नगरी नेयं, ननु शङ्खपुरं ह्यदः / वनं चित्तरमं चेदं, हट्टमार्गो न विस्तृतः // 660 // न कर्मपरिणामोऽत्र, राजा श्रीगर्भ एव तु / अबद्धं भगवान् बुद्धे ! किमित्येवं प्रभाषते // 661 // भगवानाह जानीथे, परमार्थं न मे गिराम् / भद्रेऽगृहीतसंकेता, ततस्त्वमसि निश्चितम् // 662 // सा दध्यौ हा ममाप्यन्या, कृता भगवताऽभिधा / स्थितेति विस्मिता भावं महाभद्रा त्वलक्षयत् // 663 // नूनमेष महापापो, निर्दिष्टो नरकं गमी / जीवो भगवता तस्याः संजाता महती कृपा // 664 // पप्रच्छ भगवन्तं सा, मुच्येतासौ कथञ्चन / स प्राह दर्शनात् तेऽस्य, मोक्षः स्याच्छ्यणाच्च नः // 665 // महाभद्राऽऽह भगवंस्तद्, गच्छाम्यस्य संमुखम् / भगवानाह गच्छाशु, सफलोऽयं तवोद्यमः // 666 // ततः कृपापरा याता, महाभद्रा मदन्तिकम् / उक्तश्चाहं तया त्राणं, भज भद्र ! सदागमम् // 667 // नो चेदाभ्यन्तरं चौरं, नीत्वा त्वां पापिपञ्जरे / कदर्थयिष्यन्ति कर्मपरिणामस्य पूरुषाः // 668 // इत्युक्तवत्या नीतोऽहं, तया भगवदन्त्रिकम् / दृष्टश्चौराकृतिश्चैवं, वध्यः सकलपर्षदा // 669 // पश्यतो भगवन्तं मेऽनाख्येयसुखमञ्जनात् / मूर्छाऽऽगताऽथ शुद्ध्याप्ती, मयाऽसौ शरणीकृतः // 670 // आश्वासितो भगवता, मा भैषीरित्यहं ततः / मत्तोऽमी राजपुरुषा, दूरीभूताश्च तद्भिया // 671 // 241