________________ // 545 // सत्यं सिंहोऽसि धाम्ना त्वं, त्वया भूभूषिताऽखिला / इति मां नम्रमूर्धनस्तीथिका अपि तुष्टुवुः // 540 // तादृशीं सूरिपदवीभूति प्रेक्ष्य ममाद्भुताम् / असूययेव रुष्टा मे, पापिष्ठा भवितव्यता // 541 // चिन्तितं च तया पूर्व, प्रस्तावो यो मयाऽऽस्थितः / साम्प्रतं सोऽस्ति तदिम, ब्रुवे मोहादिभूभुजाम् // 542 // ते हि मे मुखमीक्षन्ते, याचका धनिनो यथा / तदद्य पूरयाम्याशां, तेषामेषा प्रसेदुषी // 543 // इति निश्चित्य ते सर्वे, रहस्यं ज्ञापितास्तया / स कर्मपरिणामश्च, मोहिता बन्धवश्च मे // 544 // प्रस्तारमादधुर्भूयो, मोहपापोदयादयः / किन्तु दृष्टभयाश्चक्रुः, सर्वे रहसि मन्त्रणम् कः स्याज्जयोपाय इति, प्राह मन्त्र्यथ गच्छतु / ज्ञानसंवरणस्तावद्, समिथ्यात्वस्तदन्तिके . // 546 // त्रीणि शैलेन्द्रयुक्तानि, गौरवाणि श्रयन्तु तम् / पुरुषौ प्रेषणीयौ द्वावार्त्तन्द्राशयौ ततः // 547 // लेश्या यास्यन्त्यथो कृष्णनीलकापोतसंज्ञकाः / स्वत एव तदभ्यर्णं, तिस्रस्तत्परिचारिकाः // 548 // वयं तु भूयः संस्थाप्य, नदी दीर्घा प्रमत्तताम् / रचनां मण्डपादीनां, कुर्महे प्रयताः परम् // 549 // एवं नः कुर्वतां कार्यमनायासेन सेत्स्यति / तदिदं रुचितं मन्त्रिवचो मोहादिभूभुजाम् // 550 // समर्थितं तैस्तद्वाक्यं, प्रारब्धा मन्त्रितक्रिया / अथ तेष्वन्तिकस्थेषु, हत्तरङ्गा ममोत्थिताः // 551 // 231