________________ ऋजुताऽचौरते नाम, द्वे कन्ये तत्तनूद्भवे / ... परं भावप्रसादाख्यं, पुरमस्ति मनोहरम् // 360 // राजा शुद्धाशयस्तत्र, तस्यात्मरतिरुच्यते / देव्यौ कन्ये तयोर्तेऽन्ये, द्वे ब्रह्मरतिमुक्तते .: // 361 // अन्या च मानसी सम्यग्दर्शनेन विनिर्मिता / स्ववीर्येणास्ति विद्याख्या, कन्या सन्न्यायवासभूः // 362 // चारित्रधर्मराजस्य, देव्याश्च विरतेः परा / अस्ति कुक्षिसमुद्भूता, कन्या नाम्ना निरीहता // 363 // वासाभिजननामानि, तदेवं कीर्तितानि ते / दशानामपि कन्यानामार्यकन्दमुने ! स्फुटम् // 364 // ततः कन्दमुनिः प्राह, लप्स्यते ताः कथं नृपः / बभाषे भगवान् कर्मपरिणामानुकूल्यतः // 365 // अनेन योग्यता कार्या, गुणाभ्यासेन केवलम् / यथा तस्य पितॄणां च, तासां स्यादन्न रक्तता // 366 // प्राह कन्दमुनि था ! युष्मदाज्ञावशंवदः / . अयमस्ति वदन्त्वस्य, तल्लाभौपयिकान् गुणान् ___ // 367 // बभाषे भगवानार्य !, शान्तिं समभिकाङ्क्षता / मैत्री समस्तसत्त्वेषु, भावनीया प्रयत्नतः // 368 // पराभवः परकृतः सोढव्यस्तत्प्रसङ्गतः / अनुमोद्या परप्रीतिश्चिन्त्यः स्वानुग्रहस्ततः // 369 // निन्द्यो हेतुतया चात्मा, परिभावकदुर्गतेः / / हितबुद्ध्या प्रपत्तव्याः, स्वस्य न्यक्कारकारिणः // 370 // संसारासारदर्शित्वप्रवृद्धगुरुभावतः / विधेयं सर्वथा स्वान्तं, निष्प्रकम्पमनाविलम् . . // 371 // 216