________________ // 209 // धर्मादपि भवन् भोगो, रुणद्धि चरणागमम् / चन्दनैरपि संछनो, मार्गो भवति दुर्गमः // 204 // केवलं प्रेष्यतां तस्य, पार्श्वेऽसौ स्वसुतः प्रभो ! / गृहिधर्मः सभार्यस्तत्प्रस्तावोऽस्त्यधुना शुभः अलावा स्त्यधुना शुभः // 205 // इमं देव ! स भावेन, गतमात्रं प्रपत्स्यते / इष्टा भवित्री तस्यास्य, कान्ता सद्गुणरक्तता // 206 // सदागमस्य सान्निध्यात्, द्रव्यतोऽनन्तशोऽमुना / असौ प्राप्तो यदा त्वस्य, गतः पार्श्व महत्तमः // 207 // तदा तेनाप्ययं नीतो, वात्सल्यातिशयात् सह। पल्योपमपृथक्त्वे तु, गते प्राप्तः स भावतः // 208 // ततो यदा यदा दृष्टौ, महत्तमसदागमौ / असंख्यवारास्तेनैष, भावेनाप्तस्तदा तदा अधुना तस्य पार्श्वे स्तो, महत्तमसदागमौ / . प्रहीयतां विशेषेण, तत्पार्श्वे तदसौ द्रुतम् .. // 210 // कर्महासो मनःशुद्धिगुर्वी चैव सुखासिका / तस्यास्मदाभिमुख्यं च, स्याद् विशिष्यास्य संस्तवात् // 211 // प्रस्थाप्यतां ततस्तस्य, गृहिधर्मोऽयमन्तिके / यास्यामि पश्चात् प्रस्तावं, मत्वाऽहं विद्ययाऽन्वितः // 212 // मन्त्रिणो वचनं श्रुत्वा, तदिदं नीतिनिर्मलम् / चारित्रधर्मराजेन्द्रः, प्रजिघाय सुतं निजम् // 213 // आपृच्छ्य स ततः कर्मपरिणाममहीभुजम् / मदन्तिके समायातस्तत्रैवाह्लादमन्दिरै // 214 // आविर्भूतो ममाग्रेऽसौ, शृण्वतः कन्ददेशनाम् / प्रकाशितश्च तेनापि, श्रितो बन्धुधिया मया // 215 // 203