________________ गुरुवाक्यप्रबुद्धेन, तौ मया हितकारिणौ / बुद्धौ सातनरेन्द्रेण, तदा मयि विजृम्भितम् .. // 192 // अभूद्. यो मयि रक्तात्मा, सत्पुरे विबुधालये। ... विललास मया सार्द्ध, सप्रमोदपुरे च यः // 193 // स हि पूर्वं तिरोभूतः, प्राग् ददौ मे सुखासिकाम् / आविर्भूतस्तदाऽभूत् तावागतौ बान्धवौ यदा // 194 // सत्कान्तारत्नपूगादिलाभात् याऽभूत् सुखासिका / ततोऽनन्तगुणा जाता, गुरुवाक्यश्रुतौ मम // 195 // तदा कुलन्धरेणापि, महत्तमसदागमौ / . तया मदनमञ्जर्या, प्रपन्नौ मुनिसन्निधौ // 196 // विशिष्य देशनां चक्रे, ततस्तुष्टोऽधिकं मुनिः / चित्तवृत्तौ ततो भीता, मोहाद्या रोधकं जहुः // 197 // चारित्रधर्मराजेन, सद्बोध: सचिवस्तदा / उक्तः संप्रति शुभ्राऽभूत्, चित्तवृत्तिमहाटवी // 198 // ईषद्रे च रिपवः, सन्ति संत्यक्तरोधकाः / संसारिजीवसविधे, विद्यामादाय तद् व्रज // 199 // उपकन्दमुनि ज्ञातः, स्थितः स च चरैर्मया। तत्रावश्यं भवन्तं च, स्नेहेन प्रतिपत्स्यते // 200 // सद्बोधः प्राह राजेन्द्र !, युक्तमुक्तमिदं त्वया / / अत्र प्रयोजनेऽद्यापि, विलम्बः किन्तु युज्यते // 201 // स हि पुण्योदयस्तस्य, स च साताभिधः सुहृत् / / कियन्तमपि कालं स्तो, भूरिभोगफलावहौ यावत् तदनुवृत्त्याऽयमध्यास्ते भोगभाग् गृहम् / तावन्न मे सविद्यस्य, युक्तं गन्तुं तदन्तिके . // 203 // 202 202 //