________________ // 156 // . // 157 // // 158 // // 159 // // 160 // // 161 // ततो मां प्रेक्ष्य तैया॑तमहो रूपमहो गुणाः / अहो नरोत्तमस्यास्य, माहात्म्यं वाक्पथातिगम् अहो मदनमञ्जाः ; सुसमीक्षितकारिता / वृतोऽयमीदृशो भर्ता, यया सौभाग्यभाग्यभूः अनेन स्तम्भिता नूनं, वयं स्वीयेन तेजसा / सह मित्रेण पत्न्या च, स्वयं यन्मुत्कलोऽस्त्ययम् / तद् दुष्ठ कृतमस्माभिरीदृशो यन्नरोत्तमः / जिघांसित इतो जाड्यात्, स्तम्भोऽस्माकं न नोचितः अतः परमयं स्वामी, वयं चास्य पदातयः / ध्यायन्त इति ते चित्ते, केनचिन्मुत्कलीकृताः लग्नास्ते खेचरास्तूर्णमागत्य मम पादयोः / रणार्थः पर्यवसितस्तदुत्साहो मम स्तवे उक्तस्तैरहमस्माकं, क्षन्तव्यं दुष्कृतं त्वया। . वयं जाता गुणकीता, नाथ'! भृत्यास्तवाधुना ततोऽभूत् तेषु कनकोदरो विगतमत्सरः। जातश्च मुत्कलः सर्वैरन्योन्यं क्षमितं ततः सर्वे प्रमुदिता जाताः, खेचरा बान्धवाधिकाः / वार्तां श्रुत्वाऽऽगतस्तत्र, ता राजा मधुवारणः अम्बा चान्तःपुरैः साढ़ें, शेषा अप्यागता जनाः / ततः पितृपदद्वन्द्वं, मयाऽन्यैश्च नृपैर्नतम् समं मदनमञ्जर्या, माताऽपि प्रणता मया। अन्येऽपि लोका विधिना, यथाहँ बहुमानिताः आलिङ्गितोऽहं तातेन, हर्षाश्रुप्लुतचक्षुषा / कुलन्धरेण वृत्तान्तः, सर्वोऽप्यस्मै निवेदितः // 162 // // 163 // // 164 // // 165 // // 166 // // 167 // 19