________________ // 132 // // 133 // // 134 // // 135 // // 136 // // 137 // कृतमस्माभिरुत्थानं, प्रतिपत्तिः कृतोचिता। स्थिताः सर्वे यथास्थानं, तेनाहं वीक्षितश्चिरम् निश्चितश्च स एवायमित्यथानन्दशालिना। पृष्टा कामलता साऽऽख्यद्, वृत्तान्तं निखिलं मम ईदृशे नररत्ने या, निर्बबन्ध मनस्तया। स्वाग्रहो देवि ! नियूंढः, प्राहेति कनकोदरः ततः कामलता प्राह, सत्यमेतत्र संशयः / कदापि किं कामयते, शक्रादन्यं पुलोमजा अत्रान्तरे समागत्य, चटुलेन निवेदितम् / कनकोदरभूपस्य, कर्णे किमपि धीमता ततो विलम्बेन कृतमिति कामलतां प्रति / वदन् मदनमञ्जर्या, विवाहं कनकोदरः . अकारयन्मां संक्षेपात्, स्थाने तत्रैव पावने। अदर्शयद् विमानौघं, नानारत्नभृतं ततः कुलन्धराय प्रोचेऽमून, रत्नपूगानिहानयम् / राजपुत्रस्य कोशार्थं, तदेतान् स्वीकरोत्वसौ स प्राह यूयमेवात्र, प्रमाणं प्रश्न एष कः। तान् दत्त्वा प्रययौ तोषं, राजाऽथ कनकोदरः हृष्टा कामलता बाढं, चिन्तासन्तापशान्तितः। प्रीतो लवलिकादिश्च, परिवारोऽखिलस्तदा अहं मदनमञ्जर्या, रत्नपूगाढ्यया तया। शोभां रविरिव प्राप्तो, धामाढ्यदिवसश्रिया अत्रान्तरे महामेघनिकुरम्बमिवाग्रतः / विद्याधरबलं दूरादागच्छद् व्योम्नि वीक्षितम् // 138 // // 139 // // 140 // // 141 // // 142 // // 143 // 190