________________ तच्चारु चारु विहितं, त्वयाऽऽगत्य नरोत्तम ! / भक्तिस्तवेयं सद्भावसौहृदद्रुममञ्जरी // 708 // एवं ब्रुवाणं प्रत्याह, महामोहः परिग्रहम् / साधूदितं त्वया वत्स !, सागरोऽयं ममासवः // 709 // निर्मिथ्यो मम भक्तोऽयं, न्यासस्थानं ममौजसः / मत्पुत्रराज्ययोग्योऽयमयं रक्षाक्षमस्तव // 710 // महामोहेन तेनैव, सागरो गीतगौरवः / परिभूय मम स्वान्तं, बाधते स्म सदागमम् // 711 // ततः स्फीतधनाकाङ्को, बहिष्कृतसदागमः / जातोऽहं पूर्ववत् त्यक्तधर्मा विषयभिक्षुकः // 712 // ततस्तं मम वृत्तान्तमाकर्ण्य करुणोदधिः / . सोऽकलको मदभ्यर्णमागन्तुं पुनरैहत // 713 // विज्ञप्ताः कोविदाचार्यास्ततस्तेन प्रणेमुषा / . घनवाहनबोधाय, व्रजामीत्यथ तेऽवदन् . // 714 // मा गास्तदन्तिकं क्लेशस्तवायं निष्फलो यतः / तत्पार्धे जागरुको स्तो महामोहपरिग्रहौ // 715 // तयोः पार्श्वे समायान्ति, सागराद्याः, पुनः पुनः / मूर्छशोषादिका दोषाः; प्रलापज्वरयोरिव // 716 // तेषामाश्रयभूतौ तावब्धिनद्याविवाम्भसाम् / तद्वशस्य च तस्य स्यात्, व सदागममीलकः // 717 // ऊपरे बीजवपनमन्धायादर्शदर्शनम् / उद्धर्तनं शवस्येदं, तस्य या धर्मदेशना // 718 // अत्यल्पस्तस्य संस्कारः, पूरयेत् त्वगिरा वपन् (भवन्) / न स्वाध्यायक्षति गुर्वी, कूपं जलमिवाञ्जले: // 719 // 101