________________ // 564 // // 565 // // 566 // // 567 // // 568 // // 569 // प्रत्यब्रवीच्च सचिवं, सम्यग्दर्शननामकः / अनेन सार्धमेषोऽपि, किं न प्रेष्यो महत्तमः सद्बोधः प्राह भात्युच्चैर्युक्तोऽनेन सदागमः / प्रस्तावाभावतः किन्तु, नाधुनैष प्रहीयते भूपः प्राह कदा मन्त्रिन् ! प्रस्तावोऽस्य भविष्यति / मन्त्र्याहोच्चैर्यदा गन्ता, रागमेष सदागमे तदैव प्रेषणीयोऽयं, तस्य पार्श्वे महत्तमः / भूयः सदागमासङ्गाद्, योग्यता सा भविष्यति यथा रत्ने शतक्षारपुटशोध्ये फलावहः / उत्तरेण श्रमः प्राच्यस्तथा ज्ञेयः सदागमे प्राप्नोति जीवः संसारी, भूयो भूयः सदागमात्. / वीर्यं यदाऽस्यावसरस्तदा सम्यक्त्वयोजने प्रपन्ने मन्त्रिवचने, ततस्तेन महीभुजा / सदागमः सन्निधानं, क्रमान्मम समागतः ज्ञानसंवरणो नाम, महामोहनियुक्तकः / लीनः स्थितस्ततो दृष्ट्वा सदागमसमागमम् अकलङ्कोऽथ संप्राप्तो, ध्यानारूढस्य सन्निधौ / मया सह निषण्णश्च, तं प्रणम्य महामुनिम् धर्मलाभाशिषं दत्त्वा, पूर्णध्यानः स देशनाम् / अकलङ्काय दत्ते स्म, मोहमत्तेभकेसरी तस्य पार्श्वे मया दृष्टः, स महात्मा सदागमः / शापितथाकलङ्केन, वयस्यायं सदागमः एते हि मुनयोऽस्याज्ञां, लङ्घयन्ति न कर्हिचित् / सूरिरषोऽस्य जानीते, महिमानमुदारधीः // 570 // 571 // // 572 // // 573 // // 574 // // 575 // ... 150