________________ नूनमेष महापापो, निर्दिष्टो नरकं गमी / जीवो भगवता तस्याः, संजाता महती कृपा पप्रच्छ भगवन्तं सा, मुच्येतासौ कथञ्चन / स प्राह दर्शनात् तेऽस्य, मोक्षः, स्याच्छ्रयणाच्च नः // 140 // महाभद्राऽऽह भगवंस्तद्गच्छाम्यस्य संमुखम् / भगवानाह गच्छाशु, सफलोऽयं तवोद्यमः // 141 // गताऽथ कृपयाऽभ्यर्णं, साऽनुसुन्दरचक्रिणः / चौर्यमाफलमाख्यातं, यथा भगवतोदितम् // 142 // तदर्शनानुभावेन, प्रबुद्धश्चक्रिपुङ्गवः / अन्तरङ्गं निजं चौर्य, बुद्ध्वा भीतो भृशं हृदि // 143 // ततः प्राह महाभद्रा, भगवन्तं सदागमम् / शरणं प्रतिपद्यस्व, यथा ते न भयं भवेत् // 144 // प्रबुबोधयिषुश्चौर्य, प्रभूक्तं प्राणिनां ततः / वैक्रिया निजं चक्री, चौररूपमचीकरत् // 145 // भस्मना लिप्तगात्रोऽथ, दत्तगैरिकहस्तकः / व्याप्तस्तृणमषीपुजैः, कणवीरस्रजावृतः // 146 // शरावमालाबीभत्सो, जरत्पिठरखण्डभृत् / बद्धलोप्नो गले त्रस्तः, स्थापितो रासभोपरि // 147 // समन्ताद्राजपुरुषैर्वेष्टितो विकृताशयैः / / प्रकम्पः कान्दिशीकोऽसौ, ययौ भगवदन्तिकम् // 148 // दृष्ट्वा सदागमं किञ्चिज्जाताश्वास इवाथ सः। अनाख्येयां दशां प्राप्तः, पतितो धरणीतले // 149 // लब्ध्वा चैतन्यमुत्थाय, सदागममथावदत् / जायस्व नाथ ! मां भीतं, मा भैषीरित्युवाच सः // 150 // पट