________________ // 81 // भद्रे ! स पुण्डरीकोऽयं, वर्ण्यते तनयोऽनयोः / देवीदेवाविमौ विश्वजनकौ तत्त्वतो यतः // 79 // अथागृहीतभावार्था, जगौ सुललिता पुनः / अनयोस्तनयो जातः, कथं निर्बीजवन्ध्ययोः .. // 80 // ततः प्रवर्तिनी प्रज्ञाविशाला प्राह तामिदम् / मुग्धे ! तत्त्वानभिज्ञाऽसि, परमार्थमतः शृणु इमौ हि तत्त्वतोऽनन्ताऽपत्यावप्यनपत्यकौ / . ख्यापितावविवेकादिदृग्दोषाशङ्किमन्त्रिभिः // 82 // इदानीं तत्कथं ताभ्यां, पुत्रजन्म प्रकाशितम् / मुग्धां तामिति पृच्छन्ती, पुनराह प्रवर्तिनी अस्यामेवास्ति पुर्यां मे, धर्माचार्यः सदागमः / रहस्यमनयोः सर्वं, स जानाति महाशयः // 84 // स चान्यदा मया पृष्टो, हृष्यन् हर्षस्य कारणम् / निर्बन्धप्रेरितः प्राहः, शृणु भद्रे ! कुतूहलम् // 85 // विज्ञप्तो नृपतिः कालपरिणत्या रह:स्थया / . क्षाल्यतामावयोर्वन्ध्याऽबीजत्वभवदुर्यशः // 86 // अलीकोऽप्यपवादो हि, महिमानं क्षयं नयेत् / / कलङ्कीति श्रुतश्चन्द्रस्तातेनापि बहिष्कृतः // 87 // अपत्यान्यात्मनीनानि, परेषां ख्यापितानि यैः / प्रष्टुमर्हन्ति तेऽत्रार्थे नाविवेकादिमन्त्रिणः // 88 // प्रतिश्रुतमिदं देव्या, वचो राज्ञा यतो हितम् / समक्षं सर्वलोकानां, पुत्रजन्म प्रकाशितम् . // 89 // सोऽयं भव्यो ममाभीष्ट, इति हृष्यामि धीमत्ति ! / मयोक्तं युज्यते पूज्याः, स्थाने हर्षोऽयमेष वः . // 90 //