________________ // 70 // = सस्पृहं मन्त्रयत्येषा, पुरतो भर्तुरुन्मदा / योनि जवनिक्रां त्यक्त्वा, पात्रैर्निर्गम्यतामितः // 67 // गृह्यतां स्तन्यमम्बायाः, संहृत्य रुदितक्रियाम् / लुठयतां च पुनधूल्यां, शिक्ष्यतां पदचङ् क्रमः // 68 // विण्मूत्रैर्भूयतां भूयो, मलिनैर्बालचापले / पठ्यतां पटु कौमारे, तारुण्ये भुज्यतां वधूः // 69 // वलीपलितबीभत्सर्वार्धके भूयतां पुनः / पुनः प्रविश्यतां योनौ, पुनर्निर्गम्यतामितः इत्येवं मन्त्रयित्वा साऽनन्तवारा विडम्बनाम् / करोति लोकपात्राणां, स्वाभीष्टार्थविधायिनी (पञ्चभिः कुलकम्) // 71 // तयोः प्रयान्ति दंपत्योर्वासराः स्नेहनिर्भराः / देवी प्रोवाच राजानमन्यदा रहसि स्थितम् / // 72 // ईहे पुत्रसुखं स्वामित्रन्यूनमपरं तु मे / स प्राह सिद्धमेवेदमावयोराशयैक्यतः / // 73 // प्रीता भर्तृगिरा देवी, स्वप्ने प्रेक्षत साऽन्यदा / मुखे प्रविष्टो जठरान्निर्गतः सुन्दराकृतिः // 74 // केनापि सुहृदा नीत, इति हर्षविषादभाक् / सन्ध्येवार्कतमोमिश्रा, तं स्वप्नं प्राह भूभुजे // 75 // स प्राह ते सुतः श्रेष्ठो, भावी स्थाता तु नो चिरम् / धर्माचार्यवचोबुद्धः, स्वीयार्थं साधयिष्यति // 76 // पुत्रोऽथ सुषुवे पूर्णशुभदोहदया तया / पित्राऽस्य भव्य इत्याख्या, कृता स्वप्नानुसारतः // 77 // मात्रा सुमतिरित्यन्या, कृता सा दोहदाश्रयात् / योगोऽयं दक्षिणावर्तशंखेऽभूद् दुग्धसन्निभः // 78 // = = = 43