________________ स च केलिप्रियो दुष्टो, नर्तयत्यङ्गिनः सदा / तेऽपि तं नातिवर्तन्ते, तत्प्रतापप्रमर्दिताः // 55 // स नारकादिरूपेण, नृत्यतो वेदनातुरान् / कन्दतः प्राणिनो दृष्ट्वा, प्राप्नोति विपुलां मदम् // 56 // अनार्यकार्यसज्जं च, लोकं दृष्ट्वा स माद्यति / नाटके दत्तधीश्चेष्टावेषादिविकृताशये। // 57 // रागद्वेषाख्यमुरजं, कुभावास्फालनोन्मदम् / सूत्रधारमहामोहं, क्रोधमानादिगायनम् / // 58 // आनन्दिभोगविस्तारनान्दीमङ्गलपाठकम् / . विहितास्तोकबिब्बोककामनामविदूषकम् // 59 // वर्णकैश्चित्रलेश्याभिविलसत्पात्रमण्डनम् / योन्याख्यप्रविशत्पात्रनेपथ्यव्यवधायकम् ' // 60 // दीनताकिङ्किणीक्वाणैः, कुसंज्ञाकंसिकास्वनैः / उत्तालैः शठतातालै, रङ्गरागैश्च मत्सरैः // 61 // दुष्टध्यानैरभिनयैर्धमिभिस्तत्त्वविप्लवैः / स्फुटैरर्धाक्षिविक्षेपैर्यथाभूतार्थनिह्नवैः // 62 // मण्डपैश्चित्तसङ्कोचैरुल्लोचैर्विविधाश्रवैः / . लोकाकाशोदरे रङ्गस्थाने विहितविस्मयम् // 63 // पुद्गलस्कन्धसंबन्धशेषोपस्करसंचयम् / कारयन्नाटकं लोकान्, लीलामनुभवत्यसौ (सप्तभिः कुलकम्) // 64 // तस्यासीद् भूपतेः कालपरिणत्यभिधा प्रिया / स्वाहा स्वाहाभुजो यद्वन्नियत्याद्यतिशायिनी // 65 // प्रष्टव्या विषमे कार्ये, चित्तवृत्तिरिवास्य सा। पार्वतीव महेशस्य, वपुरर्धमधिष्ठिता // 66 // પર