________________ तत्र नृपा बहिरन्तः शान्ता दीप्ताश्च सूरयो दृष्टाः / मन्त्रिवरा ज्ञातारो, गूढार्थानामुपाध्यायाः // 52 // गीतार्था वरयोधाः, परेतभर्तुः पुरोऽपि भयरहिताः / .. भावापन्मग्नानामुद्धर्तारः कुलादीनाम् उपकारिणः पदद्वयदक्षा गणचिन्तका नियुक्ताश्च / तलवर्गिकाश्च सामान्यभिक्षवो विहितगुर्वाज्ञाः // 54 // आर्याः स्थविरा लोकाः, प्रमत्तललनानिवारणोद्युक्ताः / शुचिधर्मशीललीलाललनाश्च श्राविकावर्गाः // 55 // श्राद्धगणा भटनिकरा, ध्यायन्तो जिनवरं महाराजम् / . गुरुजननिर्देशपरा, नैमित्तिकनित्यकर्मकृतः // 56 // पुण्यानुबन्धिपुण्यं, दत्ते वैराग्यकारणं भोगम् / / इति ये दिव्या भोगा, दृष्टं तैः सदनमिदमिद्धम् // 57 // सुस्थितनृपस्य शासनमन्दिरमीदृशं स संप्रेक्ष्य / विस्मयमयाद् विशेष, सोन्मादतया तु नाज्ञासीत् // 58 // जाते हि कर्मविवरे, जिज्ञासुर्भवति जिनमते जन्तुः / मिथ्यात्वांशोन्मादैर्न तु भवति विशेषसंवित्तिः // 59 // पूते हृदयाकूते, स्फुरितं पुनरस्य लब्धबोधस्य / / येन प्रदर्शितमिदं, स द्वा:स्थो मे महाबन्धुः // 60 // जिज्ञासाऽपि ममेयं, मुदमियतीमस्य करुणया दत्ते / येऽत्र वसन्त्यतिमुदिता, धन्यास्ते धूततापभराः // 61 // अथ सप्तरज्जुभूमिकलोकप्रासादशिखरनिष्ठेन / सुस्थितनृपेण स कृपादृष्टयैक्ष्यत चिन्तयन्नेवम् // 62 // मार्गानुसारिताया, भद्रकभावे प्रवर्तमानस्य / भगवद्दर्शनमेतद्, भगवद्बहुमानभावेन // 63 // -