________________ आराद्धा विधिना ह्येषा, कुर्याच्चित्तं स्थिरं नृणाम् / अविद्याजनिता भावाः, क्षीयन्तेऽस्याः प्रभावतः / // 1356 // यः कुदृष्ट्याऽन्वितः प्रोक्तो, मिथ्यादर्शननामकः / विरुद्धं चेष्टितं सर्वं, ततोऽस्य प्रमदाजुषः // 1357 // महत्तमो मोहबले, मिथ्यादर्शननामकः / यथा चारित्रधर्मस्य, तथाऽसौ नृपतेर्बले // 1358 // क्षयेण प्रतिपक्षस्य, प्रशमेनोभयेन वा / त्रिरूपश्च भवत्येष, स्वभावादेव शक्तिमान् // 1359 // यद्वा रूपत्रयं तस्य, मन्त्री सद्बोधनामकः / .. कुरुतेऽयं हि जानीते, भवद् भूतं च भावि च // 1360 // सूक्ष्मव्यवहितार्थेषु, छनं नास्त्यस्य किञ्चन / अनन्तद्रव्यपर्यायं, प्रेक्षतेऽसौ चराचरम्' // 1361 // नीतीनां पारदृश्वाऽसौ, राज्यकार्यविचिन्तकः / वत्सलो नरनाथस्य, महत्तममनःप्रियः भय महत्तममनःप्रियः // 1362 // ज्ञानसंवरणस्यायं, विपक्षो मन्त्रिपुङ्गवः / / क्षयोपशमतस्तस्य, क्षयाद् वोभयरूपभाक् // 1363 // इयं चावगतिर्नाम, भार्याऽस्यैव समीपगा / प्राणाः स्वरूपं सर्वस्वं, शरीराव्यतिरेकिणी // 1364 // एते पञ्चास्य दृश्यन्ते, स्वाङ्गभूता वयस्यकाः / आद्योऽत्राभिनिबोधोऽयमिन्द्रियानिन्द्रियार्थवित् // 1365 // यस्यादेशे पुरं सर्वं, द्वितीयोऽयं सदागमः / सद्बोधो मन्त्रितां नीतो, राज्ञाऽस्य मुखपाटवात् // 1366 // तृतीयोऽवधिनामायं, नानारूपं निरीक्षते / वचिद्दीर्घ क्वचिद्धस्वं, क्वचित् स्तोकं क्वचिद् बहु // 1367 // 244