________________ // 888 // // 889 // 11.01111 // 890 // // 891 // // 892 // // 893 // शोकश्च मतिमोहश्च, राजराज्ञीशरीरयोः / अत्रान्तरे प्रविष्टौ तौ, वेतालौ कामरूपिणौ ताभ्यां हाहारवश्चक, करुणाकन्दभैरवः / राज्ञी निपतिता भूमौ, राजा प्राणैरमुच्यत ततो भूमिलुलत्केशं, दलितोरुविभूषणम् / वियोगसर्पनिर्मोकलालाक्लिन्नास्यकोटरम् उरस्ताडनसंमिश्र, निर्भग्नवलयावलि / बृहदाक्रन्दनं जातं, रिपुकम्पनयोषिताम् सर्वतः करुणध्वानपरं पश्यन् जनं ततः / विस्मयप्रेरितो बुद्धस्तनयो मातुलं जगौ किमेतत्क्षणमात्रेण, हित्वा प्राचीननर्तनम् / . नर्तनान्तरमारब्धं, लोकैर्भझ्यन्तरादिदम् विमर्शः प्राह यौ दृष्टौ, प्रविशन्तौ नरौ त्वया / ताभ्यामित्थं विनाट्यन्ते, लोकाः स्वातन्त्र्यवर्जिताः यथा मिथ्याभिमानेन, तादृशं नाटिताः पुरा / तथैतादृशमेताभ्यां, नाट्यन्तेऽमी तपस्विनः शोको वा मतिमोहो वा, तेषामेव न बाधकः / पश्यन्ति ज्ञानदृष्ट्या ये, समग्रं क्षणभङ्गुरम् मिथ्याज्ञानवतां शोकः स्यानटैरिष्टसङ्गमैः / तत्त्वज्ञानां तु वैराग्यशस्त्रमुत्तेजितं भवेत् आदावेव हि निर्णीतेऽनित्यभावे व शोचनम् / नित्यभावे तु निर्णीते, ध्रुवः शोको यदुच्यते अनित्यताकृतबुद्धिानमाल्यो न शोचति / नित्यताकृतबुद्धिस्तु भग्नभाण्डोऽपि शोचति 205 // 894 // // 895 // // 896 // Hill // 897 // // 898 // // 899 //