________________ यायात् सुतामदत्त्वैव, यद्यसौ नरकेसरी / ततः कुमारसान्निध्यकारिणो मेऽयशो ध्रुवम् // 116 // अयोग्यायापि तेनास्मै, दापयामि सुलोचनाम् / .. इति ध्यात्वा पितुः स्वप्नं, निशाशेषे ददावसौ // 117 // दृष्टस्तत्र वदन् कश्चित्, पुरुषः कुन्दसुन्दरः / . दापयिष्याम्यहं कन्यां, कुमारायेति मा शुचः // 118 // तेन स्वप्नेन मुदितस्तात: प्रातरबूबुधत् / पुण्योदयस्तदा चक्रे, नरकेसरिणो धियम् . // 119 // नरवाहनराजोऽयं, गुणैः ख्यातो जगत्त्रये / हेतुर्ममागमस्यात्र, ज्ञातो राज्यान्तरेष्वपि // 120 // ततः कन्यामदत्त्वैव, गमनं मे न.शोभनम् / यथाकथञ्चिद् देयाऽसौ, नो चेत् पक्षद्वयक्षतिः // 121 // तं भावं नरसुन्दर्य, प्रोवाच नरकेसरी / तथेति प्रतिशुश्राव, साऽपि पुण्योदयाज्ञया // 122 // नरकेसरिराजोऽथ, तातस्यैवमभाषत / कुमाराव कन्या मे, कृतं बहुविकत्थनैः // 123 // प्रतिशुश्राव तातस्तत्प्रशस्ते वासरे ततः / परिणीता मया तुच्छरुत्सवैर्नरसुन्दरी . . // 124 // नरकेसरिराजोऽथ, मुदितः स्वाश्रयं गतः / विनोदैर्नरसुन्दर्या, गतः कालः कियान् मम // 125 // आवयोः प्रेमसम्बन्धं, दृढं पुण्योदयोऽकरोत् / मिथोविश्लेषरहितं, चन्द्रचन्द्रिकयोरिव // 126 // तं दृष्ट्वा सुहृदाभासौ, परमार्थेन वैरिणौ / .. शैलराजमृषावादौ, परं क्रोधमुपागतौ . . // 127 // 140