________________ पृष्टो मयाऽथ विजयपुराध्वानं न सोऽवदत् / .. व्याकुलत्वान्न शुश्राव, मद्वचोऽनादरात् ततः // 732 // हिंसावैश्वानरोग्रेण, समाकृष्टा कटीतटात् / असिपुत्री मया सद्यः, खड्गस्तेनाऽपि तादृशा // 733 // प्रहारौ समकं दत्तौ, द्वाभ्यां गात्रविदारिणौ। .... जीर्णैकभववेद्या च, समकं गुटिका द्वयोः // 734 // ततोऽपरे वितीर्णे ते, भवितव्यतया द्वयोः / .... पुर्यां पापनिवासायां, नीतौ सप्तमपाटके, // 735 // त्रयस्त्रिंशत्सागरायुर्भुक्त्वा तत्र मिथोहती / गुटिकान्तरमाहात्म्यान्मत्स्यौ जातौ मिथो द्विषौ // 736 // ततोऽपि पाटके षष्ठे, द्वाविंशत्यर्णवायुषौ / परस्पराभिघातेन, धृतावत्यन्तदुःखितौ , // 737 // पञ्चाक्षपशुसंस्थाने, भवितव्यतया ततः / कृतौ गर्भजसौ द्वौ, वैरावेधकृताहती // 738 // ततः पापनिवासायां, धृतौ पञ्चमपाटके / गतं मिथो घ्नतोरायुर्द्वयोः सप्तदशार्णवाः . // 739 // ततः सिंहावुभौ जातो, तीव्रवैरानुबन्धिनौ / दशार्णवायुषौ पापे, चतुर्थे पाटके ततः // 740 // सोढस्तत्र मिथो घातः, श्येनौ जातावुभौ ततः / ततोऽप्यधः स्फुरद्वैरौ, तृतीये पाटके गतौ // 741 // त्रिविधा वेदना तत्र, सोढा सप्तार्णवायुषा / ततश्च नकुलौ जातौ, मिथोगात्रप्रहारिणौ // 742 // त्रिदुःखौ व्यर्णवायुष्कौ, द्वितीये पाटके ततः / . भ्रान्तोऽहमेवमन्यान्यान्तरस्थानेष्वनन्तशः , // 743 // 128 वा