________________ // 696 // // 697 // // 698 // // 699 // // 700 // // 701 // नृपो जगावयोग्यानां, भगवंश्चिन्तया कृतम् / मया बुद्धो विशेषोऽयं, सिद्धं मम समीहितम् परोपकारः कर्तव्यः, सत्यां शक्तौ मनीषिणा / परोपकारासामर्थ्य, कुर्यात् स्वार्थे महादरम् भगवांनाह पृथ्वीश ! न त्राणं ज्ञानमात्रतः / श्रद्धाक्रियान्वयादेव, तदभीष्टार्थसाधकम् तत्र श्रद्धानमस्त्येव, विस्तारि तव सर्वतः / क्रियां तु यदि शक्नोषि, कर्तुं तत्सिध्यति हितम् परं तन्निघृणं कर्म, नृपतिः प्राह कीदृशम् / गुरुर्जगाद कुर्वन्ति, मुनयो यदनारतम् अनादिप्रेमसंबद्धं, द्वितीयं यत् कुटुम्बकम् / आद्येन योधयन्त्युच्चै?राघोरबलेन तत् द्वितीयस्य कुटुम्बस्य, मूलोत्पत्तिनिबन्धनम् / घातयन्ति विवेकेन, महामोहपितामहम् चूर्णयन्तो न खिद्यन्ते, रागं वैराग्ययन्त्रतः / एतत्कुटुम्बाधिकृतं, महाबलमहारथम् नन्ति मैत्रीशरेणोच्चै रागस्यैव सहोदरम् / द्वेषं न हृदये जातु, पश्चात्तापं च कुर्वते पाटयन्तः क्रोधबन्धु, क्षमया क्रकचेन च / उल्लसन्ति तथा मानं, निघ्नन्तो मार्दवासिना मायामार्जवदण्डेन, निघ्नन्ति जरतीमपि / संतोषाग्नौ क्षिपन्त्युच्चैर्लोभं बालमपि क्षणात् कामं च ब्रह्महस्तेन, मयन्तीव मत्कुणम् / घ्नन्ति शोकं धिया शक्त्या, चित्तधैर्येषुणा भयम् // 702 // // 703 // // 704 // // 705 // // 706 // // 707 // 125