________________ // 288 // // 289 // // 290 // // 291 // // 292 // // 293 // आनीतोऽथ प्रमोदेन, पित्रा कनकशेखरः / प्रासादस्तस्य दत्तश्च, मदीयभवनान्तिके संजातो निर्भरः स्नेहस्तस्य तत्र मया सह / तातापमानवृत्तान्तस्तस्य पृष्टो मयाऽन्यदा स प्राह मित्रवृन्देन, युक्तः केलिपरोऽन्यदा / शमावहं वनं प्राप्तस्तत्राद्राक्षमहं मुनिम् प्रणम्य चरणौ तस्य, पृष्टो धर्म महाशयः / स साधुधर्ममाख्याय, श्राद्धधर्ममचीकथत् तदा मया मुनेः पार्श्वे, वयस्यैः सह हर्षतः / सम्यक्त्वमूलो जगृहे, श्राद्धधर्मसुश्रुमः गतः स मुनिरन्यत्र, धर्म पालयतोऽथ मे / . श्राद्धसंसर्गतो जाता, व्युत्पत्तिजिनशासने अन्यदा पुनरायातः, स साधुर्वन्दितो मया / पृष्ठश्चेदं महाभाग, किं सारं जिनशासने / मुनिराह दया ध्यानं, रागादीनां च निग्रहः / साधर्मिकानुरागश्च, सारमेतज्जिनागमे मयाऽज्ञायि दया क्व स्यान्महारम्भस्य मादृशः / स्थिरचित्ततया साध्यो, ध्यानयोगः कुतस्तराम् विषयामिषगृद्धस्य, क्वत्यो रागादिनिग्रहः / साधर्मिकानुरागस्तु, कर्तव्यो मेऽवशिष्यते इति ध्यात्वा मुनेः पार्थे, गृहीतस्तदभिग्रहः / गृहे गत्वा मया नत्वा, तातानुज्ञा च याचिता संगान्मम पिताऽप्यासीद् भंद्रको जिनशासने / स्वाभिप्रेतं कुरुष्वेति, निःशङ्कं सोऽन्वमन्यत // 294 // // 295 // // 296 // // 297 // // 298 // // 299 //